नई दिल्ली। पिछले साल अगस्त में शिमला की वादियों में लोकसभा चुनाव में मिली पराजय पर ‘मंथन’ के लिए आयोजित ‘चिंतन बैठक’ के ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
उस वक्त जसवंत ने पत्रकारों को चर्चा के दौरान इंडिया टुडे में छपी एक कार्टून दिखाया था, जिसमें उन्हें ‘हनुमान’ के रूप में दिखाया गया था। उन्होंने कहा था, ‘भाजपा के ‘हनुमान’ से आज मैं ‘रावण’ बन गया।’
बहरहाल, भाजपा का यह ‘रावण’ एक बार फिर उसका ‘हनुमान’ बन गया है। उसका निष्कासन रद्द हो गया है और गुरुवार को 10 माह के वनवास के बाद उसकी घर वापसी हो गई।
दरअसल, भाजपा या यूं कहिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ‘रावण’ तो पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना हैं। जसवंत ने जिसकी तारीफ बतौर लेखक अपनी पुस्तक ‘जिन्ना : भारत विभाजन के आइने में’ में की थी। यही उनके भाजपा से निष्कासन का कारण बनी। भाजपा ने उनसे ऐसी रुसवाई दिखाई कि उन्हें चिंतन बैठक में शामिल होने से इंकार ही नहीं किया गया बल्कि फोन के जरिए पार्टी से निष्कासन की जानकारी दी गई।
पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी जिन्ना को सेक्यूलर बताया था और 2005 में वह भी पार्टी के ‘रावण’ बन गए थे। इसके लिए उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था।
आडवाणी के अध्यक्ष पद छोड़ने और जसवंत को निष्कासित करने के पीछे सासे ाड़ा हाथ था संघ का। संघ ने ही ‘जिन्ना विवाद’ के कारण दोनों नेताओं को अर्श से फर्श पर पटकने में अहम भूमिका निभाई थी क्योंकि संघ जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष नहीं मानता। वह जिन्ना को विभाजन का जिम्मेदार मानता है।
आश्चर्य की बात है कि न तो आडवाणी ने और न ही जसवंत ने अपनी कही बात के लिए कभी खेद जताया। इसके बावजूद दोनों ने वापसी की। आडवाणी बाद में गत लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने में सफल रहे थे और जसवंत को पार्टी में वापसी के साथ-साथ विदेश नीति, अर्थ नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर पार्टी का मार्गदर्शक करार दिया गया।
इतना ही नहीं संघ ने भले ही डी-4 (अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार और वेंकैया नायडू) के लिए अध्यक्ष का रास्ता बंद कर नितिन गडकरी को आगे बढ़ाया हो लेकिन गडकरी भी आडवाणी व डी-4 की छाया से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जहां एक ओर उनके सारथी अनंत कुमार बने हैं वहीं दूसरी ओर उनके हर फैसले पर आडवाणी और डी-4 की छाप साफ दिख रही। चाहे राम जेठमलानी को राज्यसभा में भेजने का मामला हो या जसवंत की ही वापसी का मामला हो या फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली छुट देने का।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि दोनों नेताओं पर जो कार्रवाई हुई थी वह उचित थी या वे अनुचित थे जिन्होंने कार्रवाई की थी। या भाजपा और संघ की जिन्ना पर सोच बदल गई है। या फिर आडवाणी के कद के समक्ष संघ बौना हो गया है। भविष्य में भाजपा व संघ को इन सवालों का जवाब देना ही होगा नहीं तो जिन्ना का भूत उसका यूं ही पीछा नहीं छोड़ेगा।
बकवास में पते की बात. धन्यवाद.
ReplyDeleteहैप्पी ब्लॉगिंग ........
जिन्दा लोगों की तलाश!
ReplyDeleteमर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
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आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
ReplyDeleteइंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी की इच्छा हो तो यहां पधारें -
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ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए आपको बधाई !!
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